Surya | Naresh Saxena
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सूर्य | नरेश सक्सेना
ऊर्जा से भरे लेकिन
अक्ल से लाचार, अपने भुवनभास्कर
इंच भर भी हिल नहीं पाते
कि सुलगा दें किसी का सर्द चुल्हा
ठेल उढ़का हुआ दरवाजा
चाय भर की ऊष्मा औ' रोशनी भर दें
किसी बीमार की अंधी कुठरिया में
सुना सम्पाती उड़ा था
इसी जगमग ज्योति को छूने
झुलस कर देह जिसकी गिरी धरती पर
धुआँ बन पंख जिसके उड़ गए आकाश में
हे अपरिमित ऊर्जा के स्रोत
कोई देवता हो अगर सचमुच सूर्य तुम तो
क्रूर क्यों हो इस क़दर
तुम्हारी यह अलौकिक विकलांगता
भयभीत करती है।
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