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कर्ज के तले दबे किसान, बेच दी 30 हजार करोड़ की फसल, लेकिन फिर भी खत्म नहीं हुआ कर्ज

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यूं तो शासन की तरफ से किसानों की समृद्धि के अनेक दावे किए जाते हैं, लेकिन कर्ज के बोझ तले दबे उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के किसान शासन के इन दावों को सिरे से खारिज करते नजर आ रहे हैं. दरअसल 30 हजार करोड़ रूपए तक की फसल बेचने के बावजूद भी अपना कर्जा न चुका पाने वाले ये किसान अभी बदहाल हैं. बात करें इन किसानों की आय की तो जिस प्रकार के फसलों का यह मुख्यत: उत्पादन करते हैं, उनसे तो वैसे अच्छी खासी कमाई हो जानी चाहिए, मगर अफसोस ऐसा होता नहीं है.

इसके पीछे की वजह बताते हुए अन्नदाता कहते हैं कि फसलों का वाजिब दाम न मिल पाने की वजह से किसान कर्ज के बोझ तले दबे चले जाते हैं, चूंकि इन्हें आगे चलकर कर्ज प्राप्ति के लिए बैंकों द्वारा दिए गए लोन पर निर्भर रहना पड़ता है. जिले में करीब 5 हजार किसान हैं, जो मुख्यत: गेंहू, धान व सब्जियों का उत्पादन करते हैं.

आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि जिले के किसानों पर दिसंबर 2019 में 5 हजार रूपए से अधिक तक का कर्ज था. यही नहीं, पिछले पेराई सत्र में किसानों ने 3700 करोड़ रूपए प्राप्त भी किए थे. वहीं, इस साल भी किसानों को तकरीबन 950 करोड़ रूपए का भुगतान प्राप्त हुआ है. इसके इतर किसानों ने अरबों रूपए का तो महज चावल ही सरकार को बेचा है, लेकिन इसके बावजूद भी किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं.

वहीं, किसान नेता कैलाश लांबा कहते हैं कि किसान लगातार कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं. अगर हमें इस सिलसिले पर विराम लगाना है, तो इसके लिए हमें अन्नदाताओं को उनकी फसल का वाजिब दाम दिलवाना होगा. मसलन, गन्ने की फसल की कीमत 297 रूपए प्रति क्विंटल होती है, और 325 रूपए इसका दाम मिलता है. वो भी साल भर बाद तो ऐसे में किसानों का कर्ज के बोझ तले दबना लाजमी है.

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इसके पीछे की वजह बताते हुए अन्नदाता कहते हैं कि फसलों का वाजिब दाम न मिल पाने की वजह से किसान कर्ज के बोझ तले दबे चले जाते हैं, चूंकि इन्हें आगे चलकर कर्ज प्राप्ति के लिए बैंकों द्वारा दिए गए लोन पर निर्भर रहना पड़ता है. जिले में करीब 5 हजार किसान हैं, जो मुख्यत: गेंहू, धान व सब्जियों का उत्पादन करते हैं.

आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि जिले के किसानों पर दिसंबर 2019 में 5 हजार रूपए से अधिक तक का कर्ज था. यही नहीं, पिछले पेराई सत्र में किसानों ने 3700 करोड़ रूपए प्राप्त भी किए थे. वहीं, इस साल भी किसानों को तकरीबन 950 करोड़ रूपए का भुगतान प्राप्त हुआ है. इसके इतर किसानों ने अरबों रूपए का तो महज चावल ही सरकार को बेचा है, लेकिन इसके बावजूद भी किसान कर्ज के बोझ तले दबे हैं.

वहीं, किसान नेता कैलाश लांबा कहते हैं कि किसान लगातार कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हैं. अगर हमें इस सिलसिले पर विराम लगाना है, तो इसके लिए हमें अन्नदाताओं को उनकी फसल का वाजिब दाम दिलवाना होगा. मसलन, गन्ने की फसल की कीमत 297 रूपए प्रति क्विंटल होती है, और 325 रूपए इसका दाम मिलता है. वो भी साल भर बाद तो ऐसे में किसानों का कर्ज के बोझ तले दबना लाजमी है.

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