Suwarn Saurabh відкриті
[search 0]
більше
Download the App!
show episodes
 
Artwork

1
Suwarn Saurabh Poetry

Suwarn Saurabh

Unsubscribe
Unsubscribe
Щодня+
 
ये उलझने भी अब अज़ीब सी लग रही है बगैर तेरे ये शहर भी रंगहीन सी लग रही है वैसे तो दूरियाँ भी हैं बहुत ... हमारे दरमियाँ मेरी ख़ामोशियों को समझने वाली बस तेरी कमी सी लग रही है.. मंजर जो दिख रहा अब फिज़ाओं में वक़्त रद्दी के भाव में बिक रहा बाजारों में... रब ने तुम्हें सजाया है सितारों से.. यूँ ही नहीं मिले हो तुम मुझे... ढूँढा है मैंने तुझे लाखों हज़ारों में..
  continue reading
 
Loading …
show series
 
ये उलझने भी अब अज़ीब सी लग रही है बगैर तेरे ये शहर भी रंगहीन सी लग रही हैवैसे तो दूरियाँ भी हैं बहुत ... हमारे दरमियाँमेरी ख़ामोशियों को समझने वाली बस तेरी कमी सी लग रही है.. मंजर जो दिख रहा अब फिज़ाओं मेंवक़्त रद्दी के भाव में बिक रहा बाजारों में... रब ने तुम्हें सजाया है सितारों से.. यूँ ही नहीं मिले हो तुम मुझे... ढूँढा है मैंने तुझे लाखों हज़ारो…
  continue reading
 
Loading …

Короткий довідник